सलधा में बन रहा है लक्षेश्वर धाम जहां प्रतिष्ठित होंगे सवा लाख शिवलिंग। छत्तीसगढ़ के बेमेतरा में एशिया के सबसे बड़े शिव मंदिर की स्थापना की जा रही है। मंदिर में एक साथ भक्तों को सवा लाख शिवलिंग के दर्शन होंगे। प्रत्येक शिवलिंग के लिए पांच हजार एक सौ की राशि रखी गई है। शिवलिंग का नाम उसी व्यक्ति के नाम पर प्रतिष्ठित किया जाएगा |
मंदिर की परिक्रमा करने के लिए श्रद्धालुओं को सवा किलोमीटर का सफर तय करना पड़ेगा। बता दें कि सलधा में सवा लाख शिवलिंग स्थापित करने और भव्य मंदिर का निर्माण करने के लिए जगद्गुरु शंकराचार्य स्वरूपानंद महाराज और स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती'१००८' के सानिध्य में आधारशिला रखी गई। लगभग 65 करोड़ की लागत से बनने वाले मंदिर स्थल पर दंडी स्वामी ने वैदिक मंत्रोच्चार के साथ भूमि पूजन किया था। ग्राम सलधा बेमेतरा से 17 किमी दूर और देवरबीजा से 10 किमी की दूरी में शिवनाथ नदी के तट पर चार एकड़ जमीन दान में मिली है। बनने वाला मंदिर एशिया का सबसे बड़ा शिव मंदिर माना जा रहा है।
दंडी स्वामी के मार्गदर्शन में भव्य मंदिर का निर्माण किया जा रहा है। मंदिर में सवा लाख शिवलिंग की स्थापना की जाएगी। 34 हजार वर्गफीट में मंदिर बनाया जा रहा है। मंदिर परिसर में विशाल जलकुंड के अलावा बगीचा भी बनाया जाएगा एवं सौर ऊर्जा से बिजली की व्यवस्था की जाएगी। पांच हजार लोग एक साथ मंदिर परिसर में खड़े हो सकेंगे। मंदिर में 8 कक्ष का निर्माण होगा जिसमें संचालन समिति भंडारा व पाठशाला की व्यवस्था कर सकती है। मंदिर का मुख्य शिखर 75 फीट का होगा। नगर पुरोहित के निवास में पहुंचने पर ज्योतिर्मया नंद का बाबूलाल साहू, मीना साहू ने चरण पखार कर पूजन किया। महाराज ने उपस्थित जनों को धर्म कार्यों में जुड़े रहने का आशीष प्रदान करते हुए कहा कि सनातनी कभी हिंसा नहीं करता, लेकिन आत्मरक्षा करने से पीछे भी नहीं रहता। उन्होंने सलधा के निर्माणाधीन मंदिर के बारे में बताया कि एक ही स्थान पर सवा लाख शिवलिंग की स्थापना से केवल सलधा ही नहीं छत्तीसगढ़ का भी महत्व विश्व में बढ़ेगा।
प्रत्येक शिवलिंग के लिए पांच हजार एक सौ की राशि रखी गई है। शिवलिंग का नाम उसी व्यक्ति के नाम पर प्रतिष्ठित किया जाएगा | जिन्होंने सहयोग राशि प्रदान की है। जैसे राम के नाम से रामेश्वर है वैसे ही अंशदान देने वाले के नाम से महादेव की स्थापना की जाएगी।
परमाराध्य' परमधर्माधीश उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य जी स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती जी महाराज '1008' जी महाराज के मीडिया प्रभारी अशोक साहू ने बताया पूज्यपाद शंकराचार्य जी ने मंगलवार प्रातः भगवान चंद्रमौलेश्वर के पूजार्चन पश्चात भक्तो को दिव्य दर्शन एवं चरणोदक प्रसाद दिए। तत्पश्चात दूर-दूर से आए भक्तो के धर्म सम्बंधित जिज्ञासाओं को दूर किए।
दोपहर 3 बजे शिवगंगा आश्रम से लक्षेश्वर धाम कथा स्थल पहुँचे जहाँ पन्च कुण्डीय रुद्रमहायज्ञ स्थल का परिक्रमा कर कथा स्थल पहुँचे, जहाँ कृपापात्र शिष्य आशीष छाबड़ा विधायक बेमेतरा व यजमानों द्वारा चरणपादुका का पूजन किया गया। वहीं कवर्धा से आए घनश्याम आदिवासी ने अपने द्वारा रचित शिव वंदना का संगीत के धुन में गायन कर आशीर्वाद लिया। तत्पश्चात पंडित निखिल ने कथा पूर्व बिरुदावली का बखान किया तत्पश्चात शंकराचार्य ने राम संकीर्तन कर कथा प्रारम्भ किए।
श्री शिव महापुराण कथा के प्रारंभ में शंकराचार्य महाराज ने कहा कि बहुत दिनों से यह विचार किया जा रहा था ,कि सपाद लखेश्वर धाम सलधा में भगवान श्री शिव के महापुराण का वाचन किया जाए, लेकिन जब हम लोग यह सोचा करते थे तब तक कोई ना कोई भी विघ्न आ जाता था। एक बार तो मंडप भी लगा दिया गया, लेकिन चक्रवात आया और उड़ा कर के ले चला गया था। एक बार और मन बनाया तो देश में कोरोना आ गया। लोगों ने कहा कि अब आप यात्रा नहीं कर सकते आगे नहीं जा सकते तो ऐसी परिस्थितियां बनती रही जिसके कारण चाह करके भी इस पुराण का वाचन यहां पर नहीं हो सका। प्रभु की इच्छा नही रही होंगी और अब प्रभु की इच्छा हैं। अब पानी तो नहीं बरस रहा ब्रह्मचारी जी पानी बरसवा देंगे।
आप लोग उस उपहार का आनंद लेते हुए भगवान श्री शिव जी के इस पुराण का श्रवण करने के लिए बैठ चुके हैं। यही भगवान की इच्छा है, जैसी भगवान की इच्छा। हम सब तो भगवान के भक्त हैं, अपनी इच्छा भगवान के सामने नहीं रखते, भगवान की जो इच्छा है, उसे अपनी इच्छा बना लेते हैं। हे प्रभु! जैसे तेरी इच्छा हैं तेरी इच्छा में ही मेरा ध्यान है। मैं क्या जानू कि मेरा कल्याण किसमें है इसलिए तेरी इच्छा के अनुसार अपने आप को मोड़ लेता हूं। जब भगवान ने चाहा तभी सही समय है और इस समय से हमे लगता है कि प्रतिष्ठा का समय नजदीक आ रहा है।
अब भगवान विराजमान होना चाहते हैं। सपाद लखेश्वर धाम में अपना रूप धारण करके अलग-अलग रूप अलग-अलग नाम से एक साथ हम सबकी आंखों में वे दृष्टिकोण होंगे। कैसा उनका भव्य स्वरूप होगा, कल्पना करने पर ही आनंद आ जाता हैं। जब साक्षात भगवान हमारे सामने होंगे, ठीक है हम अगर मंच से आप को प्रेरित करेंगे उससे अच्छा भगवान ही आप को प्रेरित करें। उनकी प्रेरणा से प्रेरित होकर आप उनमे तल्लीन हो जाएंगे ।